भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया / अखिलेश तिवारी
Kavita Kosh से
तू इश्क में मिटा न कभी दार पर गया
नायब ज़िन्दगी को भी बेकार कर गया
मिटटी का घर बिखरना था आखिर बिखर गया
अच्छा हुआ कि ज़ेहन से आंधी का डर गया
बेहतर था कैद से ये बिखर जाना इसलिए
ख़ुश्बू की तरह से मैं फिजा में बिखर गया
'अखिलेश' शायरी में जिसे ढूंढते हो तुम
जाने वो धूप छाँव का पैकर किधर गया.