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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>संस्कृति को म्लान करते
समझ को बदलते
परम्पराओं को पलटते
भरोसे से खिलवाड़ करते
बदलाव के नाम पर
हवस के रास्ते
संस्कृति के गहरे आशय
दरकिनार करते
दिशा को बदल रहे है
संस्कृति को छीज रहे वे
पूरे दलबल के साथ
टी.वी. मीडिया
</poem>
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|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
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समझ को बदलते
परम्पराओं को पलटते
भरोसे से खिलवाड़ करते
बदलाव के नाम पर
हवस के रास्ते
संस्कृति के गहरे आशय
दरकिनार करते
दिशा को बदल रहे है
संस्कृति को छीज रहे वे
पूरे दलबल के साथ
टी.वी. मीडिया
</poem>