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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>वे हर शताब्दी
चोला बदलते हैं
और चले आते
नभ में, जल में और आकाश में
कभी नहीं बिगड़ा
उनका टाइम-टेबल
रखते हमेशा संभाल कर
पुराने चोले को
नए चोले की अन्दर वाली जेब में
उस चोले की कतरन को
आकर मेरे सिरहाने
गई शताब्दी का हिसाब करते हैं
मौन रहकर वेे।
</poem>
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