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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार‎
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<poem>
(राग भैरवी-ताल झपताल)

कर मन हरि को ध्यान, राम-गुन गा‌इये।
प्रेम-मगन सब देह सुरति बिसरा‌इये॥
हरि-संकीर्तन करत अश्रुधारा बहै।
गदगद होवे कंठ, परम सुख सो लहै॥
पुलकित तनु हरि-प्रेम हृदय जो नाचहीं।
सुर-मुनि ताकी अनुपम गति नित जाचहीं॥
नाम लेत मुख हँसत कबहुँ कर रुदनहीं।
ताको हिय नित करहिं दयामय सदनहीं॥
</poem>
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