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04:43, 3 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग परज-ताल कहरवा)
क्षणभंगुर प्रत्यक्ष जगत के सारे जीवन, धन, अधिकार।
इनके लिये कामना करना, पाना इन्हें-सभी बेकार॥
सुख न कभी होगा इनसे, ये दुःखोंके हैं पारावार।
बड़ी मूर्खता है, जो इनमें कुछ भी रखता ममता-प्यार॥
इन सबका आना-जाना है सब प्रभुका माया-विस्तार।
इनमें रहो असंग, भजो नित मायापतिको सभी प्रकार॥
</poem>