भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षणभंगुर प्रत्यक्ष जगत के / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग परज-ताल कहरवा)

क्षणभंगुर प्रत्यक्ष जगत ‌के सारे जीवन, धन, अधिकार।
इनके लिये कामना करना, पाना इन्हें-सभी बेकार॥
सुख न कभी होगा इनसे, ये दुःखोंके हैं पारावार।
बड़ी मूर्खता है, जो इनमें कुछ भी रखता ममता-प्यार॥
इन सबका आना-जाना है सब प्रभुका माया-विस्तार।
इनमें रहो असंग, भजो नित मायापतिको सभी प्रकार॥