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आज बन-उपवन में चंचल मेरे मन में
मोहन मुरलीधारी कुंज कुंज फिरे श्याम |
सुनो मोहन नुपूर गूँजत है
बाजे मुरली बोले राधा नाम
कुंज कुंज फिरे श्याम ||
बोले बाँसुरी आओ श्याम-पियारी,
ढुँढ़त है श्याम-बिहारी,
बनमाला सब चंचल उड़ावे अंचल,
कोयल सखी गावे साथ गुणधाम कुंज कुंज श्याम |
फूल कली भोले घुँघट खोले
पिया के मिलन कि प्रेम की बोली बोले,
पवन पिया लेके सुन्दर सौरभ,
हँसत यमुना सखी दिवस-याम कुंज कुंज फिरे श्याम ||
 
 
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मिलनसागर
कवि काजी नज़रुल इसलाम का कविता
कोइ भि कविता पर क्लिक् करते हि वह आपके सामने आ जायगा
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आज बन-उपवन में चंचल मेरे मन में
अरे अरे सखी बार बार छि छि
अगर तुम राधा होते श्याम
कृष्ण कन्हईया आयो मन में मोहन मुरली बजाओ
खेलत वायु फूलवन में, आओ प्राण-पिया
चक्र-सुदर्शन छोड़के मोहन तुम बने बनवारी
चंचल सुन्दर नन्दकुमार गोपी चितचोर प्रेम मनोहर नवल किशोर
जगजन मोहन संकटहारी
जपे त्रिभूवन कृष्ण के नाम पवन
जयतू श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण मुरारी शंखचक्र गदा पद्मधारी
झूले कदम के डार के झूलना पे किशोरी किशोर
झुलन झुलाए झाउ झक् झोरे, देखो सखी चम्पा लचके
तुम प्रेम के घनश्याम मैं प्रेम की श्याम-प्यारी
तुम हो मेरे मन के मोहन मै हूँ प्रेम अभिलाषी
देखोरी मेरो गोपाल धरो है नवीन नट की साज
नाचे यशोदा के अंगना में शिशु गोपाल
प्रेम नगर का ठिकाना कर ले प्रेम नगर का ठिकाना
मेरे तन के तुम अधिकारी ओ पिताम्बरधारी
यमुना के तीर पे सखीरी सुनी मै
राधा श्याम किशोर प्रीतम कृष्ण गोपाल, बनमाली बृज के गोपाल
श्याम सुन्दर मन-मन्दिर में आओ आओ
सुन्दर हो तुम मनमोहन हो नेरे अंतरयामी
सोवत जागत आँठू जान राहत प्रभू मन में तुम्हारे ध्यान
हर का भजन कर ले मनुआ हर का भजन कर ले
अरे अरे सखी बार बार छि छि
ठारत चंचल अँखिया साँवलिया ।
दुरु दुरु गुरु गुरु काँपते हिया ऊरु
हाथ से गिर जाए कुमकुम थालिया ।।
आर न होरी खेलबो गोरी
आबीर फाग दे पानी में डारी हा प्यारी---
श्याम कि फागुआ लाल की लगुआ
छि छि मोरी शरम धरम सब हारी
मारे छातिया मे कुमकुम बे-शरम बानिया ।।
 
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मिलनसागर
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अगर तुम राधा होते श्याम।
मेरी तरह बस आठों पहर तुम,
रटते श्याम का नाम ।।
वन-फूल की माला निराली
वन जाति नागन काली
कृष्ण प्रेम की भीख मांगने
आते लाख जनम ।
तुम, आते इस बृजधाम ।।
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में
बसता बंसीवाला ;
और, धीरे धारे उसकी धुन से
बढ़ती मन की ज्वाला ।
पनघट में नैन बिछाए तुम,
रहते आस लगाए
और, काले के संग प्रीत लगाकर
हो जाते बदनाम ।।
 
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मिलनसागर
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कृष्ण कन्हईया आयो मन में मोहन मुरली बजाओ ।
कान्ति अनुपम नील पद्मसम सुन्दर रूप दिखाओ ।
सुनाओ सुमधूर नुपूर गुंजन
“राधा, राधा” करि फिर फिर वन वन
प्रेम-कुंज में फूलसेज पर मोहन रास रचाओ ;
मोहन मुरली बजाओ ।
राधा नाम लिखे अंग अंग में,
वृन्दावन में फिरो गोपी-संग में,
पहरो गले वनफूल की माला प्रेम का गीत सुनाओ,
मोहन मुरली बजाओ ।
 
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मिलनसागर
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खेलत वायु फूलवन में, आओ प्राण-पिया ।
आओ मन में प्रेम-साथी आज रजनी, गाओ प्राण-पिया ।।
मन-वन से प्रेम मिलि खेलत है फूलकली,
बोलत है पिया पिया बाजे मुरलिया ।।
मन्दिर में राजत है पिया तब मूर्ती ।
प्रेम-पूजा लेओ पिया, आओ प्रेम साथी ।।
चाँद हसे तारा साथे आओ पिया प्रेम-रथे
सुन्दर है प्रेम-राती आओ मोहनिया आओ प्राण पिया ।।
 
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मिलनसागर
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चक्र-सुदर्शन छोड़के मोहन तुम बने बनवारी।
छिन लिए हैं गदा-पदम सब मिल करके ब्रजनारी।।
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