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चक्र-सुदर्शन छोड़के मोहन तुम बने बनवारी / काजी नज़रुल इस्लाम

चक्र-सुदर्शन छोड़के मोहन तुम बने बनवारी।
छिन लिए हैं गदा-पदम सब मिल करके ब्रजनारी।।
चार भूजा अब दो बनाए,
छोड़के बैकुंठ बृज में आए
रास रचाए बृज के मोहन बन गए मुरलीधारी।।
सत्य़भामा को छोड़के आए,
राधा प्यारी साथ में लाए।
बैतरणी को छोड़के बन गए यमुना के तटचारी।।