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धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||
मुर्गे थककर हार गये हैं ,कब से चिल्ला चिल्ला|
निकल घोंसलों से गौरैयां, मचा रहीं हैं हल्ला||
तारों ने मुँह फेर लिया है ,तुम मुंह धोकर जाओ||धरती के सब लोग सो रहे ,जाकर उन्हें उठाओ||
पूरब के पर्वत की चाहत ,तुम्हें गोद में ले लें|
सागर की लहरों की इच्छा, साथ तुम्हारे खेलें||
शीतल पवन कर रहा कत्थक ,धूप गीत तुम गाओ||
धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ||
सूरज मुखी कह रहा” भैया", अब जल्दी से आएं|
देख आपका सुंदर मुखड़ा ,हम भी तो खिल जायें||’जाओ बेटे जल्दी से जग, के दुख दर्द मिटाओ||धरती के सब लोग सो रहे,जाकर उन्हें उठाओ||
नौ दो ग्यारह हुआ अंधेरा ,कब से डरकर भागा|तुमसे भय खाकर ही उसने ,राज सिंहासन त्यागा||समर क्षेत्र में जाकर दिन पर, अपना रंग जमाओ||
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||
अंधियारे से क्यों डरना,कैसा उससे घबराना|
जहां उजाला हुआ तो निश्चित, है उसका हट जाना||
सोलह घोड़ों के रथ चढ़कर, निर्भय हो कर जाओ||
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||
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