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{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
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<poem>
राम-लखन नृप-सुअन दोउ राजत कौसिक संग।
रूप-सुधा-सौंदर्य-निधि उमगत अंग सुअंग॥
दामिनि-बारिद-बर-वरन, तेज-पुंज रस-रंग।
नख-सिख सुंदर निरखि छबि मोहे अमित अनंग॥
धनु-सर कर, केहरि-ठवनि, कटि पटपीत-निषंग।
मुनि मख-राखन, भय-हरन, बिरमत सदा असंग।
बिकट कुटिल मारीच मति नीच सुबाहु भुअंग॥
उभय जीति, मुनि जग्य कौं सफल कर्यो सब अंग॥
</poem>
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राम-लखन नृप-सुअन दोउ राजत कौसिक संग।
रूप-सुधा-सौंदर्य-निधि उमगत अंग सुअंग॥
दामिनि-बारिद-बर-वरन, तेज-पुंज रस-रंग।
नख-सिख सुंदर निरखि छबि मोहे अमित अनंग॥
धनु-सर कर, केहरि-ठवनि, कटि पटपीत-निषंग।
मुनि मख-राखन, भय-हरन, बिरमत सदा असंग।
बिकट कुटिल मारीच मति नीच सुबाहु भुअंग॥
उभय जीति, मुनि जग्य कौं सफल कर्यो सब अंग॥
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