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<poem>
(राग केदार-ताल तीन ताल)

मन, कछु वा दिनकी सुधि राख।
जा दिन तेरे तनु-दुकानकी उठि जैहें सब साख॥
इंद्रिय सकल न मानहिं अनुमति छोड़ चलैं सब साथ।
सुत, परिवार, नारि नहिं को‌ऊ पूछैं दुख की गाथ॥
वारँट लै जम-दूत आ‌इ तोहि पकरि बाँधि लै जाय।
को‌उ न बनै सहाय काल तिहि देखत ही रहि जाय॥
जम के कारागार नरक महँ अतिसय संकट पाय।
बार-बार करनी सुमिरन करि सिर धुनि-धुनि पछिताय॥
जो यहि दुख तें उबरो चाहै तो हरि-नाम पुकार।
राम-नाम ते मिटै सकल दुख, मिलै परम सुख-सार॥
</poem>
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