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11:33, 24 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
मुझसे कभी किसी प्राणी का हो जाये न अहित-अपमान।
सबमें तुम्हीं दिखायी दो, हो सबका मुझसे हित-समान॥
दुःख मिटानेमें औरोंके, अपना सुख कर दूँ बलिदान।
बढ़ते देख दूसरोंके सुख, मैं पाऊँ आनन्द महान॥
अपने छोटे-से अघको मैं मानूँ बहुत बड़ा अपराध।
कभी न देखूँ दोष पराया, गुण सबके देखूँ निर्बाध॥
घृणा करूँ मैं नहीं किसीसे, रहूँ सदा दुष्कृत्य से दूर।
आने दूँ कुविचार न मनमें, रखूँ सद्विचार भरपूर॥
बुरे संग से बचा रहूँ, नित करूँ प्रेमियोंका सत्सन्ग।
रँगा रहे जीवन मेरा मधु पावन प्रेम-भक्ति के रन्ग॥
</poem>