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08:12, 26 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग शिवरञ्जनी-तीन ताल)
नहीं करूँगा कभी किसी का अब तन-मन-धनसे अपमान।
सबमें सदा देख प्रभुको, मैं सदा करूँगा शुचि समान॥
परुष-व्यंग्य-निन्दा वचनोंका नहीं करूँगा मैं व्यवहार।
सदा करूँगा सबका सुधामयी हित-वाणीसे सत्कार॥
सबमें प्रभुके मैं अनुपम गुण-गण ही देखूँगा सब ओर।
नमन करूँगा मैं सबके पद-कमलोंमें, हो भाव-विभोर॥
प्राणि-पदार्थ सभी देंगे फिर मुझको नित्य परम आनन्द।
क्योंकि सभीमें दीख पड़ेंगे मुझे नित्य सत्-चित् आनन्द॥
</poem>