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08:40, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कक्ष में कोख
बेजान कोई
बूझ सका न बुझ ने में पा सका
बुझे बिना
लगता है, नाल वही
लगता है, शरीर वही
लगता है, जान वही
अभी, अब नहीं
सफ़ेदा
दूसरी ओर से
</poem>