518 bytes added,
10:58, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सिर्फ़ एक बार पलट कर पीछे देख लेने दो
यवनिका से
कुछ पता नहीं चल रहा
खखूरता मैं राख
टपटप
खडाऊं स्वर
टिमटिमाएंगे कभी
अबूझ संकेत बने जीवन के
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader