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पीठ कोरे पिता-17 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
सिर्फ़ एक बार पलट कर पीछे देख लेने दो
यवनिका से
कुछ पता नहीं चल रहा
खखूरता मैं राख
टपटप
खडाऊं स्वर
टिमटिमाएंगे कभी
अबूझ संकेत बने जीवन के