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08:45, 29 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरुणाभ सौरभ
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आधी रात
रेलगाड़ी की आवाज़ में
तीन-दिन
तीन-रात
कसक सन्नाटा और
अधनींदी को दबाकर
सीने के किसी कोने में
सपनों को चस्पा-चस्पा
रेज़ा-रेज़ा वक़्त के साथ
पहर बीतने का इंतज़ार
अधजगी रात में
उनींदी डूबी आँखें
थकान को भूलकर
कविता पैदा करती है.
</poem>