आधी रात 
रेलगाड़ी की आवाज़ में
तीन-दिन 
तीन-रात 
कसक सन्नाटा और 
अधनींदी को दबाकर
सीने के किसी कोने में 
सपनों को चस्पा-चस्पा 
रेज़ा-रेज़ा वक़्त के साथ
पहर बीतने का इंतज़ार
अधजगी रात में 
उनींदी डूबी आँखें 
थकान को भूलकर 
कविता पैदा करती है.