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04:14, 1 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आशुतोष दुबे
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
तेज़ दौड़ता हुआ धावक
कुछ देख नहीं रहा था
सिर्फ दौड़ रहा था
उसके पीछे कई धावक थे
उससे आगे निकलने की जी-तोड़ कोशिश में
अचानक वह धीमा हो गया
फिर दौड़ना छोड़कर चलने लगा
फिर रुक गया
फिर निकल गया धीरे से बाहर
बैठ गया सीढियों पर
जो कभी उससे पीछे थे
बन्दूक की गोली की तरह सनसनाते दौड़ते रहे
उसे देखे बगैर
एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की कोशिश में
उसने पहली बार दौड़ को देखा
दौड़ने वालों को देखा
दौड़ देखने वालों को देखा
उसने पहली बार अपने बगैर मैदान को देखा
और पहचाना
</poem>