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धावक / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
तेज़ दौड़ता हुआ धावक
कुछ देख नहीं रहा था
सिर्फ दौड़ रहा था
उसके पीछे कई धावक थे
उससे आगे निकलने की जी-तोड़ कोशिश में
अचानक वह धीमा हो गया
फिर दौड़ना छोड़कर चलने लगा
फिर रुक गया
फिर निकल गया धीरे से बाहर
बैठ गया सीढियों पर
जो कभी उससे पीछे थे
बन्दूक की गोली की तरह सनसनाते दौड़ते रहे
उसे देखे बगैर
एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की कोशिश में
उसने पहली बार दौड़ को देखा
दौड़ने वालों को देखा
दौड़ देखने वालों को देखा
उसने पहली बार अपने बगैर मैदान को देखा
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