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{{KKRachna
|रचनाकार=आशुतोष दुबे
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
राम जानते हैं कि
सोने का हिरण हो नहीं सकता
फिर भी उन्हें उसके पीछे - पीछे
जाना है
किससे कहें कि हिरण झूठा था
पर इच्छा सच्ची थी
थके - हाँफते, पसीने में लथपथ, सूखे गले और धड़कते हृदय से राम
खाली हाथ जब लौटेंगे
क्या जानते होंगे कि अब
प्रियाहीन
होना है
रोना है
जागना है
एक अधूरी इच्छा के प्रेत से
बचते हुए
फिर से
भागना है
</poem>
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राम जानते हैं कि
सोने का हिरण हो नहीं सकता
फिर भी उन्हें उसके पीछे - पीछे
जाना है
किससे कहें कि हिरण झूठा था
पर इच्छा सच्ची थी
थके - हाँफते, पसीने में लथपथ, सूखे गले और धड़कते हृदय से राम
खाली हाथ जब लौटेंगे
क्या जानते होंगे कि अब
प्रियाहीन
होना है
रोना है
जागना है
एक अधूरी इच्छा के प्रेत से
बचते हुए
फिर से
भागना है
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