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ते ही प्रियतम जुगलवर, मो जीवन सब काल॥1॥
मेरे मन के भामते ललित लाड़िली-लाल।
तिन की पद-रति पाय अब यह तनु होत होय निहाल॥2॥
लली-ललन के वदन-विधु हों ये नयन चकोर।
निरखि-निरखि निरखन चहें, तकें न दूजी ओर॥3॥
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