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जासों काज सरत अपुनो तासों सब करहिं निहोर।
विना हेतु जो कृपा करै ऐसो को तुम बिनु और॥1॥
ग्यानी गुनी गनी को अग-जग, तुम हो गई बहोर 8बिगड़ी <ref>बिगड़ी को बनाने वाले</ref>।
जाहि कहूँ कोउ पूछत नाहीं ताके तुम निज ठौर॥2॥
‘पतित-उधारन’ नाम तिहारो, विरद विदित सब ओर।
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