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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
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<poem>स्तब्ध, गीली, शुभ्र धुँधली रात है,<br>बह रहा शीतल शिशिर का वात है !<br><BR>
छा रहा कुहरा धुआँ-सा दूर तक,<br>छिप गया है चन्द्रमा का नूर तक !<br><BR>
हो गयी फीकी नशीली ज्योत्स्ना,<br>व्योम मानों शीत का बंदी बना !<br><BR>
घोंसलों से मूक चिड़ियाँ झाँकतीं,<br>नींद में डूबी हुईं कुछ आँकतीं !<br><BR>
शांत धरती पर खड़ी ज्यों भित्तियाँ<BR>जम गयी प्रत्येक तरु की पत्तियाँ !<br><BR>
आज चंचल धूल भी चुपचाप है,<br>उच्च टूटे शृंग पर हिमताप है,<br> <BR> बर्फ़ का तूफ़ान आएगा अभी,<br>श्वेत चादर-सी बिछाएगा अभी !<br><BR>
बन्द कर लो ये झरोखे द्वार सबबर्फ़ का तूफ़ान आएगा अभी,<br>आज तो उमड़े हृदय का प्यार सब श्वेत चादर-सी बिछाएगा अभी !<br><BR>
रात लम्बी है सबेरा दूर हैबन्द कर लो ये झरोखे द्वार सब,<br>क्या करें, यह मन बड़ा मजबूर है आज तो उमड़े हृदय का प्यार सब !<br><BR>
इस तरह अब और शरमाओ नहींरात लम्बी है सबेरा दूर है,<br>पास आओक्या करें, दूर यों जाओ नहीं यह मन बड़ा मजबूर है !<br><BR>
इस तरह अब और शरमाओ नहीं,पास आओ, दूर यों जाओ नहीं ! रूठने का आज यह अवसर नहीं<BR>ज़िन्दगी इस रात से बेहतर नहीं !<br/poem>
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