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है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा / ग़ालिब
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08:36, 16 जनवरी 2015
हर दाग़-ए-ताज़ा यक-दिल-ए-दाग़-इंतिज़ार है
अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीना-दर्द-इम्तिहाँ न पूछ
कहता था कल वो महरम-ए-राज़ अपने से की आह
दर्द-ए-जुदाइ-ए-‘असद’-उल्लाह-ख़ाँ न पूछ
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