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है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा / ग़ालिब

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है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
जिस की बहार ये हो फिर उस की ख़िज़ाँ न पूछ

नाचार बेकसी की भी हसरत उठाइए
दुश्‍वारी-ए-रह ओ सितम-ए-हम-रहाँ न पूछ

जुज़ दिल सुराग-ए-दर्द ब-दिल-ख़ुफ़्तागँ न पूछ
आईना अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ

हिन्दोस्तान साया-ए-गुल पा-ए-तख़्त था
जाह-ओ जलाल-ए-अहद-ए-विसाल-ए-बुताँ न पुछ

ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अदल हूँ
या रब हिसा-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ

हर दाग़-ए-ताज़ा यक-दिल-ए-दाग़-इंतिज़ार है
अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीना-दर्द-इम्तिहाँ न पूछ

कहता था कल वो महरम-ए-राज़ अपने से की आह
दर्द-ए-जुदाइ-ए-‘असद’-उल्लाह-ख़ाँ न पूछ