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यूँ न रह रह के हमें तरसाइए / साग़र निज़ामी
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09:13, 16 जनवरी 2015
ये हवा, 'साग़र' ये हल्की चाँदनी,
जी में आता है यहीं मर जाइए ।
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अनिल जनविजय
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