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बस-कि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमानिस्तान-ए-सुख़न
रंग-ए-षोहरत शोहरत न दिया ताज़ा-ख़याली ने मुझे
जल्वा-ए-ख़ुर से फ़ना होती है षबनम ‘ग़ालिब’
खो दिया सतवत-ए-अस्मा-ए-जलाली ने मुझे
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