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गर्म-ए-फ़रियाद रखा शल्क-ए-निहाली ने मुझे / ग़ालिब
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07:26, 21 जनवरी 2015
बस-कि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमानिस्तान-ए-सुख़न
रंग-ए-
षोहरत
शोहरत
न दिया ताज़ा-ख़याली ने मुझे
जल्वा-ए-ख़ुर से फ़ना होती है षबनम ‘ग़ालिब’
खो दिया सतवत-ए-अस्मा-ए-जलाली ने मुझे
</poem>
आशिष पुरोहित
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