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गर्म-ए-फ़रियाद रखा शल्क-ए-निहाली ने मुझे / ग़ालिब
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गर्म-ए-फ़रियाद रखा शल्क-ए-निहाली ने मुझे
तब अमाँ हिज्र में दी बर्द-ए-लयाली ने मुझे
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
ले लिया मुझ से मिरी हिम्मत-ए-आली ने मुझे
कसरत-आराइ-ए-वहदत है परस्तारी-ए-वहम
कर दिया काफ़िर इन असनाम-ए-ख़याली ने मुझे
हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा
अजब आराम दिया बे-पर-ओ-बाली ने मुझे
ज़िंदगी में भी रहा ज़ौक-ए-फ़ना का मारा
नश्शा बख़्शा ग़़ज़ब उस सागर-ए-ख़ाली ने मुझे
बस-कि थी फ़स्ल-ए-ख़िज़ान-ए-चमानिस्तान-ए-सुख़न
रंग-ए-शोहरत न दिया ताज़ा-ख़याली ने मुझे
जल्वा-ए-ख़ुर से फ़ना होती है षबनम ‘ग़ालिब’
खो दिया सतवत-ए-अस्मा-ए-जलाली ने मुझे