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ये शाम है ग़म की शाम सही / कांतिमोहन 'सोज़'
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19:40, 28 मार्च 2015
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।
आँखों में सपन
सजाये
सजाए
रख
हाँ, अपनी अगन जगाए रख
मंज़िल की लगन लगाए रख
अनिल जनविजय
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