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मान ली, मान गयी मैं हार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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08:29, 7 मई 2015
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|संग्रह=गीतांजलि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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}}
<Poem>
मान ली, हार मान गई.
जो है मेरा इस जीवन में
लेकर आई द्वार तुम्हारे.
<poem>
Sharda suman
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