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|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|संग्रह=गीतांजलि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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<Poem>
मान ली, हार मान गई.
जो है मेरा इस जीवन में
लेकर आई द्वार तुम्‍हारे.
<poem>
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