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तन ओ मन - तन टुटितहुँ नहि टुटय मन, छुटितहि मन तन-बंध
छुटय, शून्य चित परम चित जुटय सहज अनुबंध।।93।।
 
मान-विहग तन-नीड सँ उड़ि नभ शून्य विलीन
अंतरिक्ष प्रत्यक्ष पुनि ज्योति स्वमेव नवीन।।94।।
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