भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल/पृथ्वी पाल रैणा

1,216 bytes added, 20:43, 3 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा }} {{KKCatKavita}} <poem> हर साज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

हर साज़
बिखरता है
हर रंग
उखड़ता है
जीवन मिट जाता है
इच्छाएँ नहीं मरती
आँखों को
दुनिया के रंगों से मुहब्बत है
कानों का
दुनिया के सुरताल से रिश्ता है
खुश्बू हमें ले जाती है
अपनों से बहुत दूर
पैरों से सफ़र करके
इंसान भटक सकता है
यह हाथ भी
अपनों में और गैरों में
फ़र्क़ रखते हैं
यह दिल है जो हर हाल में
चुपचाप धड़कता है
अपने में पराए में
ऊंचे और नीचे में
गोरे और काले में
कोई भेद नहीं करता
मेरे साथ जन्मता है
मेरे साथ ही मरता है

</poem>