भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल/पृथ्वी पाल रैणा
Kavita Kosh से
हर साज़
बिखरता है
हर रंग
उखड़ता है
जीवन मिट जाता है
इच्छाएँ नहीं मरती
आँखों को
दुनिया के रंगों से मुहब्बत है
कानों का
दुनिया के सुरताल से रिश्ता है
खुश्बू हमें ले जाती है
अपनों से बहुत दूर
पैरों से सफ़र करके
इंसान भटक सकता है
यह हाथ भी
अपनों में और गैरों में
फ़र्क़ रखते हैं
यह दिल है जो हर हाल में
चुपचाप धड़कता है
अपने में पराए में
ऊंचे और नीचे में
गोरे और काले में
कोई भेद नहीं करता
मेरे साथ जन्मता है
मेरे साथ ही मरता है