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झुकने को तैयार था लेकिन जिस्म ने मुझको रोक दिया
अपने अपनी अना<ref>अहं</ref>ज़िन्दा रखने का जो बोझ सर पर काफ़ी था
आनेअपने-अपने वक़्त पे सारे दुनिया जीतने निकले थे
शाह<ref>शासक,राजा</ref> थे वो कि फ़क़ीर सभी का लोगों में डर काफ़ी था
दुनिया को दरकार <ref>वांछित</ref>नहीं था अज़्म<ref>संकल्प</ref> सिकन्दर जैसों काबुद्ध ,मुहम्मद,ईसा, नानक-सा इक रहबर <ref>मार्ग-दर्शक</ref> काफ़ी था
तीन बनाए ताकि वो इक दूजे पर धर पायें इल्ज़ाम<ref>दोष</ref>