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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>बूढ़ी गौरैया के पंख थके

निकले सभी खोखले दाने
खेत पुराने हैं
अगले दिन को
बहलाने के कई बहाने हैं

आँधी-पानी में
बरगद के सारे घाव पके

लौटें कैसे बौने सूरज
बँटे घोंसलों में
खोजें कैसे महक हवाएँ
जली कोंपलों में

नई छाँव से
टूटे रिश्ते पिछले आँगन के
</poem>
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