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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>अलगनी पर
धूप के टुकड़े टँगे हैं
कुछ पराये-अज़नबी हैं
कुछ सगे हैं

ओस-भीगे
और अलसाये सबेरे
बीच की दीवार से
लटके अँधेरे

आँख-मींचे देखते हैं
अधजगे हैं

छाँव में लेटे हरेपन
काँपते हैं
रात-दिन की दूरियों को
नापते हैं

कुछ खुले हैं
और कुछ चेहरे रँगे हैं


</poem>
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