भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रौशन है / कमलेश द्विवेदी

792 bytes added, 04:14, 25 दिसम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>वो आया घर रोशन है.
दीवारो-दर रौशन है.

उसको देख लगे जैसे-
चाँद ज़मीं पर रौशन है.

उसके ख़त का क्या कहना-
अक्षर-अक्षर रौशन है.

रात अमावस वाली है,
गाँव-गली-घर रौशन है.

प्यार का दीपक ताजमहल,
पत्थर-पत्थर रौशन है.

जब अपना दिल रौशन हो,
तो दुनिया भर रौशन है.

</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits