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सुपना / विनोद स्वामी

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|रचनाकार=विनोद स्वामी
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
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<poem>
माटी रा मोल लियोड़ा दो मोरिया,
दायजै में आयोड़ी दीवार-घड़ी,
जेठ री दुपारी में
हाथां काढ्योड़ी चादर अर सिराणा,
गूगै री चिलकणी कोर आळी फोटू
बरसां सूं संदूक में पड़ी देखै
एक
कमरै नैं सजावण रा सुपना।
</poem>
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