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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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वो बैठे हैं सजने को
आँखों ने सब से कह डाला सबऔर बचा रहा क्या कहने को
महके सारा घर, जब माँ
बैठे माला जपने को
शाम ढले ढ़ले जब हँस दे तू
मचले सूरज उगने को
मुस्काये जब पूरा चाँद जो मुस्काए
सागर तड़पे उठने को