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धूलि-धूसरित ताले जड़ी हवेलियों में
कैद है बीकानेर
शोर-शराबा नहीं
शांत आभा है बीकानेर
और बीकानेर से परंपरा
सुबह का जागा
अपने काम में मशगूल
सांझ ढले
पाटों पर निकल
बीकानेर से बतियाता है
बीकानेर
</poem>
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धूलि-धूसरित ताले जड़ी हवेलियों में
कैद है बीकानेर
शोर-शराबा नहीं
शांत आभा है बीकानेर
और बीकानेर से परंपरा
सुबह का जागा
अपने काम में मशगूल
सांझ ढले
पाटों पर निकल
बीकानेर से बतियाता है
बीकानेर
</poem>