भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीकानेर-5 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूलि-धूसरित ताले जड़ी हवेलियों में
कैद है बीकानेर
शोर-शराबा नहीं
शांत आभा है बीकानेर
और बीकानेर से परंपरा

सुबह का जागा
अपने काम में मशगूल
सांझ ढले
पाटों पर निकल
बीकानेर से बतियाता है
बीकानेर