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यह भी दिन बीत गया।गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।
किसके ये टूटे जलयान यहाँ आ लगे
पता नहीं बहता तट आज का
तोड तोड़ गया प्रीति या कि जोड जोड़ नए मीत गया।
एक लहर और इसी धारा में बह गई
पता नहीं दोनों के मौन में
कौन कहाँ हार गया, कौन कहाँ जीत गया।
 
यह भी दिन बीत गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।
</poem>
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