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मालवीय के बी. एच. यू. केपराधीन भारत केॅ तोंही, नींव महोत्सव नया ज्ञान के हौ रंग मंत्रा सिखैलौ,राजा-रजबाड़ा के शिक्षा मिलेॅ हाकिमकि हेनोॅ जैसेॅ, जैमेॅ कि अंग्रेजो संग रोजगार भी मिलेॅµबतैलौ
सबने सब कुछ बहुत कहलकैछुच्छे ज्ञान किताबोॅ केरोॅ, पर गाँधी के बात अलगकी मानें राखै छै; बेरथ,सुनी-सुनी के शिक्षा राजा-रैयत, होवेॅ वही लागलै तेॅ अलग-थलग शिक्षा छेकै, सधे घरोॅ के जैसें स्वारथ
पर बापू, तोहें गाँधी के परवश युग केॅ स्वालम्बन राष्ट्र प्रेम के सुर उठलै तेॅ ठठले गेलैपाठ सिखैलौं,चकित अतिथि पराधीन भारत मेॅ बापू, देवदूत रं भीतरे-भीतर, माननीयो आतंकित छेलै तोहें ऐलौ
भारत शिक्षा केरोॅ मेॅ पा}जन्य ठो, बाजी अंग्रेजी सत्ताउठलै, के खुललै नाद सब चाल,सघनआरो एकरोॅ शासन अंग्रेजी मेॅशिक्षा पर चललै, की छै भारत के हाल देशी शिक्षा हन, हन, हन
की छै राजा-धनपतियो केबापू, हीन-दीन करतूत तोंही तेॅ बतलैलौ, अपनोॅ भाषा केरोॅ मान,शासन आगू चुप हेनोॅ ज्योंहिन्दी सेॅ ही मुक्ति पैतै, बच्चा देखेॅ भूत ई सौंसे ठो हिन्दुस्तान
की नै कहलकै गाँधी जी नेॅ, हिन्दी के दोषी ठो बदला बचलै ?अंग्रेजी, राज करेॅ ई भारत मेॅ,केकरो तेॅ अच्छा ही लागलैकौनें विष केॅ घोरी मिलावै, केकरो कुछ गंगाजल नै के पचलै अक्षत मेॅ
कहते-कहते अपने यहू भाषा में शिक्षा कहलकैसेॅ, जों भारत अंग्रेज केॅ नै हित मेॅमिलतै स्वराज,तेॅ झपटै छोड़़ौ भारत ई देश अभी हीके भाषा पर, रोकौ अंग्रेजी राज के तुरत मेॅ खूनी बाज
एक बार जे रोकै लेॅ गाँधी पड़तै जी केजल्दी सेॅ, फुटलै मन अंग्रेजी के आगचाल चलन,जलतै रहलै आखिर तक ऊ, की स्वराज मिलतै बिन एकरोॅ ई विदेशी के बिना जलैलै बाग ।दलन?
बापू ई तोहीं बतलैलौ, शिक्षाओ सेॅ बड़ोॅ, चरित्रासतचरित्रा ही नर के भूषण, यही बंधु आ स्वजन-मित्रा । हिन्दी आय जहां पर स्वर शोभै, बापू तोरे गूंजेॅ मन लगलैके मोॅन, प्रान्तबनलोॅ छै सौंसे भारत के गुप्त खजाना; मिललोॅ धोॅन । बापू तोरोॅ राष्टप्रेम के छटा निखरलोॅ सब्भे ओर,भू, जन, भाषा; जहां अन्हरिया, वहीं-प्रान्त वहीं पर तोहें भोर । के बोलै छै तोरा नफरत अंग्रेजी सेॅ छेलौं घोर ?तोहें तेॅ देखौ छेलौ बस, हिन्दी सेॅ ही होतै भोर । हिन्दी-हिन्दुस्तानी में तेॅ कुछुवो नै छै भेद कहीं,हिन्दु-मुस्लिम के ई भाषा, हाँ हिन्दी स्वराज वहीं । लिखोॅ नागरी मेॅ ई भाषा, आकि फारसी लिपिये मेॅ,की अन्तर हिन्दी मेॅ आवै, मोती दोनो सिपिये मेॅ । पर बीचसाथे-साथे बतलैलौ श्रेष्ठ नागरी, हिन्दी लेॅ,होलैमानसरोवर रं ई सुन्दर, भारत माय के बिन्दी लेॅ । बापू, तोरे छेलौं सपना हिन्दी दक्खिन, उत्तर तकलहरैतै सुन्दर सुवास रं, पूरब-होले पश्चिम के घर तक । बापू तोंही ई बतलैलौ, हिन्दी के अपमान-अनादर,एकरा सेॅ स्वराज कुछुवोॅ नै कम छै, भारत माय के भटकेॅ दर-दर । देशभक्त भीऊ हुवै नै पारेॅ, ऐलै निजभाषा सेॅ नै छै प्रेम,हिन्दी ही पूछेॅ पारेॅ छै, भारत भर के कुशलो क्षेम । जे हिन्दी केॅ तुलसी हेनोॅ महाकवि छै, ऊ भाषा ओकरो कैन्हेंनी भारी होतै, दोनों पलड़ा ठो पासा । ‘हिन्दी नवजीवन’ के ऐवोॅ हिन्दी तेॅ प्राण समान,हिन्दी लेॅ चिन्ता बापू के, समाधिस्त योगी रोॅ ध्यान । बापू तोरोॅ किंछा छेलौं हिन्दी लेॅ मेॅ काॅग्रेस के काज,चलेॅ कहूँ नै भारत भर मेॅ अंग्रेजी भाषा के राज । यै लेॅ बहुत जरूरी छै कि, सबकेॅ शिक्षा हुएॅ सुलभ,माय के भाषा हेनोॅ भाषा, केकरो लेॅ छै नै दुर्लभ । पराधीन भारत में नगीच बापू, हिन्दी लेॅ सम्बल-दीवारभारत नेॅ देखलकै तखनी, हिन्दी के सुन्दर संसार । हिन्दी के उद्धारक बापू, हिन्दी केरोॅ सच्चा पूत,हिन्दी के रक्षा लेली तोंय, बनले रहयौ ज्यों अवधूत । आय जहाँ पर हिन्दी राजै, बापू, तोरे पुण्य प्रसाद,तोरे स्वर हिन्दी में गूंजै, हिन्दी के युगव्यापी नाद
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