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छोड़े सुत नारी तात भ्रात गोत नातत्यागि घर वार लोक-चार मया मोह, झूठ न सोहात बात कै विवेक बोलहीँ।जारि, धरनी विना विकार सार वैन वोलहीं।काम गये वोध भये शील वो संतोष लयेजीव-दया जीवन धरि हियामें हुलास करि, कर्म वीज भूँजि वोये कायमें कलोलहीं॥हीरा मणि मोती झरे मोलके अमोल हीं॥धरनी हिये सोहात सांईके सुरंग रातअनसुनी सुनहि अदेख देख देखि कँह, रावरंक ते निशंक तौलि तौलि मोलही।अगम को सुगम अखोल द्वार खोलहीं।काहुते न वैरना न काहुते सनेहता हिवावरे वेचारे मनियारे मतवारे भगे, प्यारे के पियार से नियारे पंथ डोलहीँ॥27॥की॥28॥
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