त्यागि घर वार लोक-चार मया मोह, जारि, धरनी विना विकार सार वैन वोलहीं।
जीव-दया जीवन धरि हियामें हुलास करि, हीरा मणि मोती झरे मोलके अमोल हीं॥
अनसुनी सुनहि अदेख देख देखि कँह, अगम को सुगम अखोल द्वार खोलहीं।
वावरे वेचारे मनियारे मतवारे भगे, प्यारे की॥28॥