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|रचनाकार=सौदा
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सावन के बादलों की तरह से भरे हुए
वे नैन हैं कि जिससे ये जंगल हरे हुए
 
इंसाफ़ अपना सौंपिए किसको बजुज़-ख़ुदा
मुंसिफ़ जो बोलते हैं सो तुझसे डरे हुए
 
’सौदा’ निकल न घर से कि अब तुझको ढूँढते
लड़के फिरें हैं पत्थरों से दामन भरे हुए
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