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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश प्रत्यूष
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
{{KKCatKavita}}<poem>
लगता होगा अच्छा किसी को
ढोना कंधे पर सलीब
ठुकवा लेना लम्बी-लम्बी कीलें
सर से पांव तक
और टंग जाना एक तस्वीर की तरह
कहे कोई कुछ भी
नहीं है तो नहीं है
स्वीकार मुझे
</poem>
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लगता होगा अच्छा किसी को
ढोना कंधे पर सलीब
ठुकवा लेना लम्बी-लम्बी कीलें
सर से पांव तक
और टंग जाना एक तस्वीर की तरह
कहे कोई कुछ भी
नहीं है तो नहीं है
स्वीकार मुझे
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