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Kavita Kosh से
रघ्घु जइसन रागी!
परी प्रेम जोधन कस जोकर
मसलहा* बैरागी!
गिरिवर के नाचब ल अभो
गली-गली गोठियावत हें!
संग राधा गिरधारी!
बिसर के चारो धाम करावत
हें सिरियल म चारी*!
भेख बदलगे देश बदलगे
बपुरा करम ठठावत* हें!
हाथी आतंकी कस लागंय
गाय बछरूवा अउ जनता के
गइया गति होवत हे!
अहिरा कस सरकार कलेचुप*
मुड़ धर के रोवत हें!
चतुरा चमरू चिकरहा संग
रामू राग मिलावत हे!
चरकोसी ले रहस लीला के
आरो* तइहा जावय!
गाड़ा गाड़ी भर भर लइका –
-पिचका धर धर आवंय!
नवछटहा अलबेला टूरा
अउ मलमलही* टूरी!
पान चबावंय मुंह रचावंय
पहिरंय रंग-रंग चूरी!
मेला मड़ई अउ पाबन कस
सब अतमा जुरियावंय!
लरा-जरा* के खातिर अब तोअसली ल तिरियावत हें !
बिन मतलब के अब चतुरा जब