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मुझे जीवन ऐसा ही चाहिए था / कुमार मुकुल
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|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=एक उर्सुला होती है / कुमार मुकुल
}}
यह लिखते
कितनी शर्म आएगी
कि मैंने
कष्ट सहे हैं
मुझे जीवन
ऐसा ही चाहिए था
अपने मुताबिक़
अपनी गलतियों से
सज़ा-धजा!
Kumar mukul
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